वोह खुद अपनी राह बनता
गिरता संभालता मस्ती में चलता था वोह
हम को कल की फिकर सताती
वोह बस आज का जशन मनाता
हर लम्हे को खुल के जीता था वोह
हम सहमे से रहते कुए में
वोह नदिया में गोते लगता
उलटी धारा चीर के तैरता था वोह
बादल आवारा था वोह
यार हमारा था वोह
वापस आ रहा है उससे मिलो ।।
Cheers to Sags on completing his MBA in flying colours.
Doesn't this feet call for a celebration Maskians?
If YES (which most of you'll will be saying) then get rolling boys. We'll rock again!
Time & Venue to be decided on consensus.
So pitch in here...
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